( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
देखो कलजुगके ग्यानी ।
एकसे एक पडे प्राणी ॥ टेक ॥
अपना सबको मार्ग बताकर ,
उनकी कीन्ही हानी ।
धनदौलत सब लूट दबाई ,
यह रखते हैं बानी ॥ १ ॥
ब्रह्मग्यानकी बात सुनाकर ,
दिया जिसे बैरागा ।
उसका धन सब छीन - छीनकर ,
करता मजा लफंगा ॥२ ॥
शिष्य बनाया सब लुट खाया ,
नहि है नामनिशानी ।
आखिर उसको रोटि न देवे ,
यह ग्यानन की बानी ॥ ३ ॥
कहता तुकड्या चोरबजारा ,
उसको दुनिया मानी ।
सच्चे जनको दूर कियाकर ,
ना देवेंगे पानी ॥ ४ ॥
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